(यह लेख मात्र एक विश्लेषण है,किसी पार्टी या दल के विचारों का खंडन या समर्थन करने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है।
कई बार यह आरोप लगाए जाते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में छेड़-छाड़ करके या किसी प्रकार की सेटिंग करके किसी पार्टी या व्यक्ति को हराया या जिताया जा सकता है।आज की निर्वाचन प्रक्रिया में यह असंभव है,विशेषतः तब जब कहीं सार्वत्रिक चुनाव किया जाना हो।ठीक से समझने के लिए हमें कुछ बातें जान लेना जरूरी है:
1) मतदान केंद्रों पर मशीनें पहुँचने से पहले कई बार जांची जाती है।चुनाव के काफी दिन पहले तज्ञों द्वारा FLC की जाती है।उस समय यह जांचा जाता है कि मशीन की सभी बटनें चालू है या नहीं।उस समय मॉक पोल करके देखा जाता है और यह पुष्टी की जाती कि क्या जिस बटन को दबाया गया ,मत उसी को मिला है? ठीक से मेमोरी चेक कर लेने के बाद उस मशीन को पास किया जाता है।
2) इसके पश्चात कैंडिडेट्स सेटअप और सीलिंग की प्रक्रिया कैंडिडेट्स या उनके प्रतिनिधियों के आगे अथॉरिटी द्वारा किया जाता है।इस समय भी मशीन को ठीक से चेक कर लिया जाता है।
3) मतदान के एक दिन पूर्व पोलिंग पार्टियां मशीन लेजाते से पूर्व यह पुष्टि करती है कि मशीन बराबर काम कर रही है या नहीं ,इस समय भी मॉक पोल करके देखा जाता है।
4)एक्चुअल पोलिंग से पहले भी मॉक पोल की प्रक्रिया कैंडिडेट्स के प्रतिनियों के द्वारा की जाती है।जब इस बात की पुष्टि हो जाती है कि मशीन में सबकुछ बराबर है तभी एक्चुअल पोलिंग होती है।
5)कई बार यह भी कहा जाता है कि सत्तापक्ष द्वारा मशीनों में सेटिंग की जाती है तांकि अन्य कैंडिडेट के मत भी उन्हें ही मिलें परंतु यह करना असंभव है।क्योंकि हजारों मशीन में सेटिंग के लिए इतना समय नही होता।
6) मशीने सीलबंद स्ट्रांग रूम में रखी जाती है।
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