Tuesday, March 7, 2017

शिक्षा पर विद्वानों के विचार

शिक्षा पर विद्वानों के विचार

विभिन्न दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों व नीतियों ने शिक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार दिए हैं। शिक्षा के अर्थ को समझने में ये विचार भी हमारी सहायता करते हैं। कुछ शिक्षा सम्बन्धी मुख्य विचार यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैंः -
  • शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। (महात्मा गांधी)
  • शिक्षा व्यक्ति की उन सभी भीतरी शक्तियों का विकास है जिससे वह अपने वातावरण पर नियंत्रण रखकर अपने उत्तरदायित्त्वों का निर्वाह कर सके। (जॉन ड्यूवी)
  • शिक्षा का अर्थ अन्तःशक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है। (हर्बट स्पैन्सर)
  • शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकृतिक, प्रगतिशील और सामंजस्यपूर्ण विकास है। (पेस्तालॉजी)
  • शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक विकास का शक्तिशाली साधन है, शिक्षा राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी है। (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, 1964-66)
  • शिक्षा बच्चे की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। ('सभी के लिए शिक्षा' पर विश्वव्यापी घोषणा, 1990)
प्राचीन भारत में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ‘मुक्ति’ की चाह रही है ( सा विद्या या विमुक्तये / विद्या उसे कहते हैं जो विमुक्त कर दे )। बाद में समय के रूप बदलने से शिक्षा ने भी उसी तरह उद्देश्य बदल लिए।

शिक्षा के प्रकार

व्यवस्था की दृष्टि से देखें तो शिक्षा के तीन रूप होते हैं -

औपचारिक शिक्षा (Formal Education)

वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में चलती हैं, औपचारिक शिक्षा कही जाती है। इस शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ, सभी निश्चित होते हैं। यह योजनाबद्ध होती है और इसकी योजना बड़ी कठोर होती है। इसमें सीखने वालों को विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय की समय सारणी के अनुसार कार्य करना होता है। इसमें परीक्षा लेने और प्रमाण पत्र प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास करती है और उसे किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के लिए योग्य बनाती है। परन्तु यह शिक्षा बड़ी व्यय-साध्य होती है। इससे धन, समय व ऊर्जा सभी अधिक व्यय करने पड़ते हैं।

निरौपचारिक शिक्षा (Non-formal Education)

वह शिक्षा जो औपचारिक शिक्षा की भाँति विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालयों की सीमा में नहीं बाँधी जाती है। परन्तु औपचारिक शिक्षा की तरह इसके उद्देश्य व पाठ्यचर्या निश्चित होती है, फर्क केवल उसकी योजना में होता है जो बहुत लचीली होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रसार और शिक्षा की व्यवस्था करना होता है। इसकी पाठ्यचर्या सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की गई है। शिक्षणविधियों व सीखने के स्थानों व समय आदि सीखने वालों की सुविधानानुसार निश्चित होता है। प्रौढ़ शिक्षा, सतत् शिक्षा, खुली शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा, ये सब निरौपचारिक शिक्षा के ही विभिन्न रूप हैं।
इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके द्वारा उन बच्चों/व्यक्तियों को शिक्षित किया जाता है जो औपचारिक शिक्षा का लाभ नहीं उठा पाए जैसे -
  • वे लोग जो विद्यालयी शिक्षा नहीं पा सके (या पूरी नहीं कर पाए),
  • प्रौढ़ व्यक्ति जो पढ़ना चाहते हैं,
  • कामकाजी महिलाएँ,
  • जो लोग औपचारिक शिक्षा में ज्यादा व्यय (धन समय या ऊर्जा किसी स्तर पर खर्च) नहीं कर सकते।
इस शिक्षा द्वारा व्यक्ति की शिक्षा को निरन्तरता भी प्रदान की जाती है, उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के नए-नए आविष्कारों से परिचित कराया जाता है और तत्कालीन आवश्यताओं की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)

वह शिक्षा जिसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती है; जिसके न उद्देश्य निश्चित होते हैं न पाठ्यचर्या और न शिक्षण विधियाँ और जो आकस्मिक रूप से सदैव चलती रहती है, उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। यह शिक्षा मनुष्य के जीवन भर चलती है और इसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में इस शिक्षा को लेता रहता है, प्रत्येक क्षण वह अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों व वातावरण से सीखता रहता है। बच्चे की प्रथम शिक्षा अनौपचारिक वातावरण में घर में रहकर ही पूरी होती है। जब वह विद्यालय में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने आता है तो एक व्यक्तित्त्व के साथ आता है जो कि उसकी अनौपचारिक शिक्षा का प्रतिफल है।
व्यक्ति की भाषा व आचरण को उचित दिशा देने, उसके अनुभवों को व्यवस्थित करने, उसे उसकी रुचि, रुझान और योग्यतानुसार किसी भी कार्य विशेष में प्रशिक्षित करने तथा जन शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार के लिए हमें औपचारिक और निरौपचारिक शिक्षा का विधान करना आवश्यक होता है।

औपचारिक शिक्षा की प्रणालियाँ

शिक्षा प्रणालियों शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, अक्सर बच्चों और युवाओं के लिए स्थापित की जाती है एक पाठ्यक्रम (curriculum) छात्रों को क्या पता होना चाहिए, बोध और शिक्षा के परिणाम के रूप में करने के लायक समझ को परिभाषित करता है। अध्यापन का पेशा, सीख प्रदान करता है जो विद्या प्राप्ति और नीतियों की एक प्रणाली, नियमों, परीक्षाओं, संरचनाओं और वित्तपोषण को सक्षम बनाता है और वित्तपोषण शिक्षकों को अपनी प्रतिभा के उच्चतम् क्षमता से पढ़ने में मदद करती है। कभी कभी शिक्षा प्रणाली सिद्धांतों या आदर्शों एवं ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग की जाती है जिसे सामाजिक अभियंत्रिका (social engineering) कहा जाता है विशेषतम अधिनायकवादी राज्यों और सरकार में यह वयवस्था के राजनीतिक दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है
  • शिक्षा एक व्यापक माध्यम है, जो छात्रों में कुछ सीख सकने के सभी अनुभवों का विकास करती है।
  • अनुदेश शिक्षक अथवा अन्य रूपों द्वारा वितरित शिक्षण को कहते है जो अभिज्ञात लक्ष्य की विद्या प्राप्ति को जान बूझ कर सरल बनने को लिए हो
  • शिक्षण एक असल उपदेशक की क्रियाओं को कहते है जो शिक्षण को सुझाने के लिए आकल्पित किया गया हो
  • प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान, कौशल, या क्षमताओं की सीख के साथ शिक्षार्थियों को तैयार करने की दृष्टि से संदर्भित है, जो कि तुरंत पूरा करने पर लागू किया जा सकता है।

प्राथमिक शिक्षा

खुली हवा में प्राथमिक स्कूल. शिक्षक (पुजारी) कक्षा को साथ बुकारेस्ट को बाहरी इलाके में, लगभग १८४२
प्राथमिक (या मौलिक) शिक्षा औपचारिक, संरचित शिक्षा के प्रथम वर्षों से बने होते हैं सामान्यतः, प्राथमिक शिक्षा में शामिल हैं छह या सात स्कूली वर्ष जो पाँच या छे साल से आरम्भ होते हैं, हालांकि इस में अन्तर राष्ट्र अथवा अन्तर राज्य भेद हो सकता है विश्व स्तर पर, अग्भाग ७०% प्राथमिक-उम्र के बच्चों का प्राथमिक शिक्षा में दाखिला हो रहा है और यह अनुपात बढ़ रहा है।[2].यूनेस्को को 'शिक्षा सभी के लिए' कार्यक्रमों को अंतर्गत, अधिकाँश देशों ने २०१५ तक प्राथमिक शिक्षा की प्राप्ति का आश्वासन दिया है और कुछ देशों में तो बच्चों की प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य प्रतिबद्ध है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा (secondary education) के बीच का विभाजन कुछ अनियन्त्रित है, लेकिन यह आमतौर पर ग्यारह या बारह साल की उम्र में होता है कुछ शिक्षा प्रणालियों में मिडल स्कूल (middle school) अलग से होते हैं और माध्यमिक शिक्षा के अंतिम चरण में संक्रमण लगभग चौदह वर्ष की उम्र के आसपास होता है जो विद्यालय प्राथमिक शिक्षा प्रदान करते हैं, उन्हें ज़्यादातर प्राथमिक विद्यालय को नाम से संदर्भित किया जाता haiइन देशों को प्राथमिक विद्यालय अक्सर प्रारम्भिक विद्यालय (infant school) एवं कनिष्ठ विद्यालय (junior school) में विभाजित किया जाता hai

माध्यमिक शिक्षा

विश्व की सबसे समकालीन शिक्षा प्रणालीयों (educational system) में माध्यमिक शिक्षा औपचारिक शिक्षा के द्वितीय वर्षों से अनुकूल है जो किशोरावस्था (adolescence) के दौरान होती है यह आम तौर पर नाबालिगों (minor) के लिए अनिवार्य, व्यापक प्राथमिक शिक्षा (primary education) से वैकल्पिक, चयनात्मक तृतीयक (tertiary) "पश्च-माध्यमिक" अथवा उच्च (higher) शिक्षा (जैसे विश्वविद्यालय, वयस्कों (adult) के लिए व्यावसायिक स्कूल (vocational school) के संक्रमण को कहेते हैं व्यवस्था पर निर्भर, इस अवधि में पाठशालाओं को माध्यमिक, हाई स्कूल (high school)s, व्यायामशाला (gymnasium)s, लिसेयुम (lyceum)s, मिडिल स्कूल (middle school)s, कॉलेज (college)s, या व्यावसायिक पाठशाला कहा जा सकता है इन शब्दों के सही अर्थ दो अलग प्रणालियों में भिन्न हैं प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के बीच का सटीक सीमा भी अलग अलग देशों में भिन्न है यहाँ तक कि उन के भीतर, भी अन्तर है, लेकिन आमतौर पर स्कूली शिक्षा के सातवे से दसवें वर्ष के आसपास है। माध्यमिक शिक्षा मुख्य रूप से किशोर वर्षों के दौरान होता है। अमरीका और कैनाडा में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को एक साथ क-१२ (K-12) सम्भोदित किया जाता है और न्यू ज़अलंद में इसे साल १-१३ कहा जाता है माध्यमिक शिक्षा का उद्देश्य सामान्य ज्ञान (common knowledge), देने के लिए, उच्च शिक्षा (higher education) के लिए या सीधे किसी पेशे (profession) के लिए तैयार करने के लिए प्रशिक्षण है सकता है

उच्च शिक्षा

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का एक संस्थान है।
उच्च शिक्षा, जिसे तृतीयक, तीसरे चरण, या पोस्ट माध्यमिक शिक्षा भी कहा जाता है, गैर अनिवार्य शिक्षा का स्तर है जो माध्यमिक शिक्षा (secondary education) जैसे हाई स्कूल (high school), माध्यमिक विद्यालय (secondary school), या जिम्नेसियम (gymnasium) की पूर्ति करता है तृतीयक शिक्षा सामान्य रूप से अवर (undergraduate) और स्नातकोत्तर शिक्षा (postgraduate education), साथ ही व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (vocational education and training) शामिल करते हैं कॉलेज (College)s और विश्वविद्यालयों तृतीयक शिक्षा प्रदान करने के मुख्य संस्थान हैं। सामूहिक, ये कभी कभी तृतीयक संस्थाओं के रूप में जाने जाते हैं आम तौर पर तृतीयक शिक्षा के परिणामवश प्रमाणपत्र (certificate)s, डिप्लोमा (diploma)s, या शैक्षिक डिग्री (academic degree) मिलते हैं
उच्च शिक्षा में, अनुसंधान और विश्वविद्यालयों के सामाजिक सेवा गतिविधियाँ शामिल हैं और शिखा के दायरे में शामिल हैं दोनों पूर्वस्नातक (undergraduate) स्तर (जिसे कभी कभी तृतीयक (tertiary education) शिक्षा कहते हैं) और स्नातक (graduate) (या स्नातकोत्तर) स्तर निर्दिष्ट (जिसे कभी कभी स्नातक पाठशाला (graduate school) कहते हैं) उस देश में उच्च शिक्षा में आम तौर पर एक डिग्री स्तर के या स्थापना डिग्री (foundation degree) योग्यता की दिशा में काम शामिल है ज़्यादातर विकसित देशों में जनसंख्या का एक अधिकतम अनुपात (५०% तक) अपने जीवन के किसी न किसी समय पर उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं इसी कारणवश उच्च शिक्षा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं (economies) के लिये एक महत्वपूर्ण उद्योग और प्रशिक्षित कर्मियों के स्रोत के रूप में अर्थव्यवस्थाओं के लिये आवश्यक है
.प्रौढ़ शिक्षा कई रूप लेती है, औपचारिक कक्षा निर्देशन से लेकर आत्म शिक्षण

वैकल्पिक शिक्षा

वैकल्पिक शिक्षा (Alternative education) गैर पारंपरिक शिक्षा भी कहलाता है अथवा शैक्षिक विकल्प एक व्यापक शब्द है जो शिक्षा के पारंपरिक शिक्षा (traditional education) के अतिरिक्त सभी शिक्षा रूपों का उल्लेख करने के लिए उपयोग किया जा सकता है इस में न केवल शिक्षा के वेह रूप शामिल हैं जो विशेष जरूरतों वाले छात्रों के लिए बनाया गया हो (किशोर गर्भावस्था से ले कर बौद्धिक विकलांगता तक) बल्कि शिक्षा के वेह रूप भी शामिल हैं जो आम दर्शकों के लिए बनाए गए हैं और वैकल्पिक शिक्षा के दर्शनशास्त्र और तरीकों का प्रयोग करें
उत्तरार्द्ध प्रकार का विकल्प अक्सर शिक्षा सुधार (education reform) परिणाम है और विभिन्न दर्शनशास्त्रों (philosophies) में जड़े हैं जो सामान्यतः मूलरूप से पारंपरिक अनिवार्य शिक्षा (compulsory education) से भिन्न हैं जब की कुछ लोग मजबूत राजनीतिक, विद्वत्तापूर्ण (scholarly), या दार्शनिक रुझान रखते हैं, दूसरे अध्यापकों और विद्यार्थियों (student) के अधिक अनौपचारिक संघ हैं जो परंपरागत शिक्षा (traditional education) के कुछ पहलुओं से असंतुष्ट हैं वेह विकल्प जिन में चार्टर school (charter school), विकल्पिक पाठशालाएं (alternative school) स्वतंत्र पाठशालाएं (independent school) और घर पर शिक्षण (home-based learning) शामिल हैं, वेह, व्यापक रूप से भिन्न हैं, लेकिन अक्सर चोटी कक्षा, छात्रों और शिक्षकों के बीच निकट संबंधों और सामुदायिक भावना (sense of community) जैसे मूल्यों पर ज़ोर देते हैं

भावुक / मानव शिक्षा

क्योंकि अक्रियात्मक शिक्षण अधिक से अधिक के मानदंड और मानक बनता जा रहा है, कम्पनीयां और व्यक्ति सामान्य शिक्षा को कम मान्यता देते हैं ठोस अच्छे शिक्षित व्यक्ति / कार्यकर्ता के रूप में अधिकतम शिक्षित और सफल उद्यमीयों में उच्च संचार कौशल के साथ मानवीयता और "भावनात्मक बुद्धिमत्ता" है
कुछ स्थानों पर, खासकर अमरीका में, वैकल्पिक जैसे शब्द शिक्षण के उस रूप का उल्लेख करते हैं जो "खतरे में" छात्रों के लिए हैं, उदहारण के लिए मैसाचुसेट्स (Massachusetts)शिक्षा विभाग (Department of Education).[3] द्वारा परिभाषित

पाठ्यक्रम

अकादमिक अनुशासन (academic discipline) jaankaari के एक शाखा है जो विश्वविद्यालय, या कुछ अन्य ऐसी विधि के द्वारा औपचारिक रूप से सिखाई जाए (taught) कार्यात्मक रूप स विषय आम तौर पर शैक्षिक पत्रिकाओं (academic journal) जिन में अनुसंधान (research) प्रकाशित होते हैं और सीखे समाजों (learned societies) जिन के यह पेशावर सदस्य हैं, उन के द्वारा परिभाषित और मन्यित होते हैं प्रोफ़ेसर मानते हैं की स्कूली शिक्षा 80% मनोवैज्ञानिक, 20% शारीरिक प्रयास है।
आमतौर पर प्रत्येक अनुशासन के कई उप विषय या शाखाएं हैं और अक्सर भेद की रेखाएं मनमाने और अस्पष्ट होती हैं शैक्षणिक विषयों का व्यापक क्षेत्रों के उदाहरण में शामिल है प्राकृतिक विज्ञानs, गणित, कंप्यूटर विज्ञान (computer science), सामाजिक विज्ञान (social sciences), मानविकी (humanities) और प्रयुक्त विज्ञान{[4]

शैक्षिक मूल्यांकन

अध्ययन रूपत्मक्ताएं

पिछले दो दशकों में शिक्षण शैली (learning styles) के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्य हुआ है दुन्न और dunn[5] ने लगभग उसी समय प्रासंगिक स्तिमुली की पह्चान, जो शिक्षण को प्रभावित करती है और पाठशाला के वातावरण से छेड़छाड़ करती है पर ध्यान केंद्रित किया जब जोसफ रेंज़ुल्ली (Joseph Renzulli)[6] ने बदलती शिक्षण रणनीतियों की सिफारिश की हॉवर्ड गार्डनर (Howard Gardner)[7] ने व्यक्तिगत प्रतिभा या योग्यताओं को अपने एकाधिक ज्ञान (Multiple Intelligences) सिद्धांत से बतलाया ज़ंग (Jung) के कामों के आधार पर मायर्स-ब्रिग्स प्रकार सूचक (Myers-Briggs Type Indicator) और Keirsey स्वभाव सॉर्टर (Keirsey Temperament Sorter)[8] ने यह समझने पर अपना ध्यान केंद्रित किया की कैसे लोगों के व्यक्तित्व उनके बातचीत के तरीके को प्रभावित करते हैं और सीखने के माहौल के भीतर यह एक दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं डेविड कोल्ब (David Kolb) और अन्थोनी ग्रेकोर्क (Anthony Gregorc) के प्रकार चित्रकार[9] समान किंतु सरलीकृत दृष्टिकोण को मानते हैं
आजकल शिक्षा को अलग अलग शिक्षण विधियों में विभाजित करना लौकिक है शिक्षण के तौर तरीके[10] शायद सबसे आम हैं[11]
  • kinesthetic (Kinesthetic):स्वयं कर्मी अनुभूतित कार्य और गतिविधियों में लगने पर आधारित शिक्षण
  • चाक्षुक (Visual): अवलोकन पर आधारित शिक्षण और क्या सीखा जा रहा है यह देखना
  • श्राव्निक (Auditory) : शिक्षण जो निर्देश / जानकारी सुनने पर आधारित हो
कहा जाता है की उनके पसंदीदा शिक्षण तौर तरीके पर आधारित, विभिन्न शिक्षण तकनीकों की विभिन्न स्तरों से प्रभावशीलता होती है[12] इस सिद्धांत का एक परिणाम है कि कारगर शिक्षण विभिन्न शैक्षिक विधियां प्रस्तुत करे जो सभी तीन शिक्षण तौर तरीके दर्शाए ताकि विद्यार्थीयों के पास अपने लिए कारगर शिक्षण विधि का चुनाव कर सकें[13]

शिक्षण

शिक्षकों के पास विषयों को भली भाँती समझने की क्षमता होनी चाहिए ताकि वेह एक नई पीढ़ी कों उस का सार संप्रेषित कर सकें लक्ष्य है की एक सुदृढ़ ज्ञान का आधार स्थापित किया जाए जिस की आधारशिला पर छात्र अपने जीवन के अलग अलग अनुभवों का निर्माण कर सकें पीढी दर् पीड़ी ज्ञान बांटना छात्रों के विकास में कारगर साबित होता है और उन्हें समाज के उपयोगी सदस्यों में विकसित होने में मदद करता है अच्छे शिक्षक अच्छा निर्णय, अनुभव और ज्ञान कों प्रासंगिक ज्ञान में अनुवादित कर सकते हैं जो छात्र समझ सकें, याद रख सकें और औरों कों बाँट सकें एक पेशे के रूप में, शिक्षण कार्य के बहुत कार्य संबंधित तनाव (WRS) है[14] जो ब्रिटेन जैसे कुछ देशों में किसी भी पेशे, के सर्वोच्च में सूचीबद्ध हैं। इस समस्या कों तेज़ी से मान्यता प्राप्त हो रही है और सहायक प्रणालियों की जगह बनायी जा रही है[15]

तकनीक

तकनीक शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बढ़ता प्रभावशाली कारक है।कम्प्यूटर और मोबाइल फोन व्यापक रूप से विकसित देशों में स्थापित शिक्षा प्रथाओं को पूरक करने और शिक्षण के नए तरीके विकसित करने जैसे ऑनलाइन शिक्षा (online education) (दूरस्थ शिक्षा का एक प्रकार).यह क्षात्रों को अपनी पसंद के अध्ययन के चुनाव का अवसर देता है कंप्यूटर के प्रचुरोद्भवन का अर्थ प्रोग्रामिंग और ब्लॉगिंग की वृद्धि भी है मल्टीमीडिया (Multimedia) सहित, तकनीक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करती है, जिस की मांग है की छात्रों कों samjha जाए और यह छात्रों का ध्यान खींचने के नए साधन प्रदान करती है जैसे आभासी शिक्षण वातावरण (Virtual learning environments). तकनीक का प्रयोग न केवल प्रशासनिक कर्तव्यों में, बल्कि छात्रों की शिक्षा में भी तेज़ी से बढ़ रहा है PowerPoint (PowerPoint) और interactive whiteboard (interactive whiteboard) कक्षा में छात्रों का ध्यान खींच रहा है प्रौद्योगिकी छात्रों के मूल्यांकन में भी प्रयोग किया जा रहा है। एक उदाहरण की है दर्शकों की प्रतिक्रिया प्रणाली (Audience Response System) (Ars) है, जो तत्काल प्रतिक्रिया परीक्षणों और कक्षा चर्चा को सक्षम बनाता है
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICTs) संवाद करने के उपकरणों और संसाधनों का एक "विविध सेट है, जो स्टोर, प्रसार और जानकारी को प्रबंधित बनाने में उपयोग किया जाता है।"[16] इन प्रौद्योगिकियों में कंप्यूटर, इंटरनेट, प्रसारण प्रौद्योगिकियों (रेडियो और टेलीविजन) और टेलीफोन शामिल हैं। कंप्यूटर और इंटरनेट शिक्षा में कैसे औपचारिक और अनौपचारिक आरोपण में सभी स्तरों पर सुधार कर सकते हैं, इस विषय में रूचि बढ़ रही है[17] पुराने सूचना और संचार प्रौद्योगिकीयां जैसे रेडियो और टेलीविजन कों दूरस्थ शिक्षा के लिए चालीस वर्षों से अधिक इस्तेमाल किया गया है हालांकि प्रिंट सबसे सस्ता, सबसे अधिक सुलभ है और इसलिए दोनों विकसित दोनों और विकासशील देशों में सबसे प्रभावी वितरण प्रणाली है[18]
विकासशील देशों में कंप्यूटर का उपयोग अधिक लागत और सीमित अवसंरचना का कारणवश अगर है भी तो अभी बुनियादी स्तर पर ही है आमतौर पर, विभिन्न प्रौद्योगिकियोँ एकमात्र वितरण प्रणाली की उपेक्षा संयोजन में उपयोग के जाती हैं उदाहरण के लिए, Kothmale सामुदायिक रेडियो इंटरनेट श्रीलंका में एक ग्रामीण समुदाय को सूचनाएं साझा करने और शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए रेडियो प्रसारण और कंप्यूटर और इंटरनेट प्रौद्योगिकी दोनों का उपयोग करता है।[19] यूनाइटेड किंगडम (इंग्लैंड) का मुक्त विश्वविद्यालय (UKOU) १९६९ में दुनिया में पहली मुक्त और दूरस्थ अध्ययन के लिए समर्पित स्थापित शिक्षा संस्था अभी भी रेडियो, टेलीविजन द्वारा पूरक भारी मुद्रण सामग्री पर निर्भर है और हाल फिलहाल वर्षों में ऑनलाइन प्रोग्रम्मिंग पर[20] इसी तरह, भारत में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, मुद्रण, अभिलिखित ऑडियो और वीडियो, रेडियो और टेलीविजन प्रसारण और ऑडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रौद्योगिकियों[21] के मेल का उपयोग करता है
"computer-assisted learning" (CAL) (कंप्यूटर सहायताप्राप्त शिक्षण) शिक्षण में प्रौद्योगिकी के उपयोग का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

इतिहास

नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेष

दर्शनशास्त्र

जॉन लोके (John Locke) का कार्य शिक्षा सम्बंधित कुछ विचार (Some Thoughts Concerning Education) १६९३ में लिखा गया था और अभी भी पश्चिमी दुनिया में पारंपरिक शिक्षा प्राथमिकताओं का खुलासा करता है
शिक्षा का दर्शनशास्त्र (philosophy of education) शिक्षा के उद्देश्य, प्रकृति और आदर्श के अध्ययन सामग्री (content) हैं संबंधित विषयों में शामिल हैं स्वयं ज्ञान (knowledge itself), बुद्धि की प्रकृति को जानना (the nature of the knowing mind) और मनुष्य विषय, प्राधिकारी की समस्याएँ और शिक्षा और समाज के बीच का रिश्ता.कम से कम Locke (Locke's) के समय से शिक्षण के दर्शनशास्त्र को विकासात्मक मनोविज्ञान (developmental psychology) और मानव विकास (human development). के सिद्धांतों से जोड़ा गया है
शिक्षा के लिए प्रस्तावित मौलिक उद्देश्यों में शामिल हैं:
शिक्षा के एक केंद्रीय जड़सूत्र में आमतौर पर शामिल है "ज्ञान का प्रदान होना "बुनियादी स्तर पर, यह उद्देश्य अंततः ज्ञान की प्रकृति, मूल और विस्तार से सम्बन्ध रखता है दर्शनशास्त्र की वेह शाखा जो इन और इन से सम्बंधित मुद्दों का व्याख्यान करती है उसे epistemology (epistemology) कहेते है अध्ययन का यह क्षेत्र अक्सर प्रकृति और ज्ञान के विभिन्न प्रकार के विश्लेषण पर जोर देता है और यह कैसे इसी तरह के विचारों जैसे सच्चाई (truth) और विश्वास (belief) से सम्बंधित है
जबकि शब्द gyan अधिकतम शिक्षा के इस सामान्य प्रयोजन को संप्रेषित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, इसे सातत्यक चेतना के भाग के रूप में देखा जा सकता है विषिष्ट आंकडे (data) से उच्चतम स्तर तक के लिए.इस रौशनी में देखने पर, सांतत्यक में अतिव्यापी स्तरों के एक सामान्य पदानुक्रम का होना सोचा जा सकता है जानकारी को बेहतर समझने और याद रखने के लिए छात्रों में नई जानकारी को पुरानी जानकारी के टुकडों से जोड़ने की क्षमता होनी चाहिए इस सांतत्यक में शामिल हो सकते हैं आंकड़े (data), जानकारी (information), ज्ञान, बुद्धि (wisdom) और अनुभूति (realization).
आदर्श या समग्र शिक्षा [सीएफ़: संकल्पनात्मक तनाव-समझ और प्रबंधन: डॉ॰ श्रीनिवास कशालिकर] है सोचा समझा विकासवादी बदलाव जो एक और सभी के समग्र स्वास्थ्य का एक साथ कल्याण पर लक्षित हो .इस के लिए आवश्यकता है अपने शरीर के स्वस्थता का विकास, प्रवृत्ति के शोधन, भावनाओं का स्पष्टीकरण और गहन, मति की समृद्धी और सार्वभौमिक एकता का परिप्रेक्ष्य संज्ञानात्मक, भावात्मक और मनोसंचालित के अतिरिक्त, उत्तेजना की पूर्ति भी आवश्यक है

मनोविज्ञान

अमरीका के एक कक्षा प्रयोग से यह सामने आया की कम आय वाले परिवारों से छात्र यदि ३ या उस से अधिक सालों के लिए चोटी कक्षा में उपस्थित रहे, तो उन की उच् विद्यालय से क्रमागति की संभावना बढ़ जाती है[22]
शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology) अध्ययन है की कैसे मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता है, शैक्षिक हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता, शिक्षण के मनोविज्ञान और विद्यालयs के रूप में संगठन का सामाजिक मनोविज्ञान (social psychology) हालांकि शब्द "शैक्षिक मनोविज्ञान" और "स्कूल मनोविज्ञान" का प्रयोग अक्सर आपस में बदल दिया जाता है, संभावना है की शोधकर्ता और कल्पनात्मक शैक्षिक मनोवैज्ञानिकों के रूप में पहचाने जाएँ, जबकि पाठशाला या पाठशाला सम्बंधित वातावरण में कर्मी स्कूल मनोविज्ञानी (school psychologist) के नाम से जाने जाते हैं शैक्षिक मनोविज्ञान सामान्य एवं उप जनसंख्या में शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रियाओं जैसे गुनी (gifted) और बच्चे जिन में विशेष विकलांगताएं (disabilities). हो से सम्बंधित है
शैक्षिक मनोविज्ञान आंशिक रूप से अन्य विषयों के साथ अपने संबंधों के सन्दर्भ से समझा जा सकता haiयह मुख्या रूप से दवाई और जीव विज्ञान. से अनुरूपी सम्बंधित मनोविज्ञान से सूचित किया जाता है शैक्षिक मनोविज्ञान आगे शैक्षिक अध्ययन में अनुदेशात्मक डिजाइन (instructional design), शैक्षिक प्रौद्योगिकी (educational technology), पाठ्यक्रम विकास, संगठनात्मक सीखने (organizational learning), विशेष शिक्षा (special education) और कक्षा प्रबंधन (classroom management). सहित विशिष्टताओं की एक विस्तृत श्रृंखला को सूचित करता है शैक्षिक मनोविज्ञान संज्ञानात्मक विज्ञान (cognitive science) और विज्ञान शिक्षण (learning sciences). से सीखता भी है और उन में योगदान भी देता है विश्वविद्यालयों में शैक्षिक मनोविज्ञान के विभाग आम तौर पर शिक्षा के संकायों के भीतर, संभवतः परिचयात्मक मनोविज्ञान पाठ्यपुस्तकों में शैक्षिक मनोविज्ञान सामग्री (लुकास, Blazek, & Raley, 2006) के प्रतिनिधित्व के अभाव के लिए लेखांकन करते हैं।

शिक्षा का आर्थिक प्रभाव

ह्द्फ्लिउह्॑एब फ्युएर्ल्फ्हेरिउप बो;इफु[ए'र फेरोउ; है की शिक्षा के उच् स्तर, आर्थिक विकास के उच्च स्तर की प्राप्ति के लिए अनिवार्य है[23] सिद्धांत में यह माना जाता है की गरीब देश अमीर देशों की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़ते है क्योंकि वेह आमिर देशों द्वारा पहले से ही परखी हुई अग्रणी तकनीक को आसानी से अपना सकते हैं किंतु अर्थशास्त्रियों का यह कहना है की अगर विश्व के सबसे आमिर और गरीब देशों में शिक्षा के स्तर में बहुत अन्तर हो, तो तकनीक जो अर्थव्यवस्था की बढ़त को तीव्र करती है, के आदान प्रदान में बहुत मुश्किलें आएँगी और इसी कारणवश दुनिया के सब से गरीब अर्थव्यवस्थाएं स्थिर ही रह जायेंगी

शिक्षा का समाजशास्त्र

रूस में यूरोप के किसी भी अन्य देश से अधिक शैक्षिक स्नातक है।
शिक्षा का समाजशास्त्र (sociology of education) वेह अध्ययन है जो बताये की कैसे सामाजिक संस्थायें सेना शैक्षिक प्रक्रियाओं और परिणामों को प्रभावित करती है और शैक्षिक प्रतिक्रियाएं सामाजित संस्थाओं और सेना को प्रबावित करते हैं बहुत लोग शिक्षा को वेह माध्यम मानते हैं जिस के द्वारा अक्षमता पर काबू पाया जा सके और सभी के लिए अधिक समानता, धन और दर्जा पाया जा सके शिक्षार्थियों को प्रगति और बेहतरी की आकांक्षाओं से प्रेरित किया जा सकता है। शिक्षा उस जगह को माना जाता है जहाँ बच्चे अपनी योग्यता और संभाव्य के अनुसार विकसित हो सकें[24] शिक्षा का उद्देश्य अपनी पूरी क्षमता के लिए हर व्यक्ति को विकसित करने के लिए किया जा सकता है।इस्तमाल किए गए समाजशास्त्रीय प्रतिमान (sociological paradigm) के अनुसार शैक्षिक समाजीकरण (socialization) प्रक्रियाओं के लक्ष्य और मतलब की समझ

विकासशील देशों में शिक्षा

विश्व का शिक्षा सूचकांक संकेत नक्शा (२००७ / २००८ के अनुसार मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report))
कुछ विकासशील देशों में, समस्याओं की संख्या और गंभीरता स्वाभाविक रूप से अधिक हैं।अधिक सुदूर या कृषि क्षेत्रों में लोग कभी कभी शिक्षा के महत्व से अनजान रह जाते हैंकई देशों में एक सक्रिय शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) और विदेशी भाषा सीखने जैसे कई विषयों, में, शिक्षा की डिग्री वास्तव में औद्योगीकृत देशों से तुलनात्मक अधिक उच् है; उदाहरण के लिए, बहुत से विकासशील देशों में छात्रों के लिए यह असामान्य नहीं है कि वेह यथोचित कई विदेशी भाषाओं में निपुण हो, जबकि विकसित देशों में यह एक दुर्लभ वस्तु है जहाँ अधिकतं जनसँख्या एक ही भाषा का उचारण करने में सक्षम हैं
वेह माता पिता जो शिक्षा के किसी भी दीर्घकालिक लाभ कि उपेक्षा अल्पावधि में बच्चों से पैसा बनाने कि उम्मीद करते है, उन के कारणवश आर्थिक दबाव होता है बाल श्रम और गरीबी पर फिल्हाली अध्ययन यह दर्शाते है की जब गरीब परिवार बुनियादी जरूरतों की पूर्ति की एक निश्चित सीमा पहुँच जाए तो माता पिता अपने बच्चों को पाठशाला में दाखिल कर देते हैं एक बार दहलीज पार कर दी गई तो यह पाया गया है कि यह एक सच्चाई है, बावजूद इसके कि इस बीच इसी बाल श्रम के संभावित आर्थिक मूल्य में वृद्धि हुई है अन्य समान व्यवसायों (profession) के अपक्षा शिक्षकों को कम भुगतान मिलता है
अपेक्षाकृत उच्च जनसंख्या घनत्व वाले देशों में अच्छे विश्वविद्यालयों की कमी और अच्छे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति दर की कमी स्पष्ट है।कुछ देशों में सामान्य, अत्यधिक संचारित, अटल केंद्रीकृत कार्यक्रम है जो शिक्षण के सभी पहलुओं को नियंत्रित करते हैं
  • वैश्वीकरण (globalization) के कारण पाठयक्रम गतिविधियों में छात्रों पर दबाव बढ़ा
  • शिक्षा के आशुरचना के लिए छात्रों के एक निश्चित प्रतिशत को (आमतौर पर स्कूलों में, 10 वीं कक्षा के बाद) हटाना
भारत ऐसी प्रौद्योगिकियों को विकसित कर रहा है जिस में टेलीफोन और इन्टरनेट लीनों की आवश्यकता नही रहेगी इसके बजाय, भारत ने एडुसैट (EDUSAT) नामक, एक शिक्षा उपग्रह का शुभारंभ किया जिस की पहुँच बहुत कम कीमत पर देश के अधिकतं भाग में होगी MIT के एक समूह ने कई प्रमुख निगमों की मदद द्वारा १०० डॉलर का लैपटॉप ($100 laptop) विकसित करने का बेडा उठाया है यह लैपटॉप २००६ के अंत या २००७ तक उपलब्ध हो जाने चाहिए कीमत पर बेचे जाने वाले लैपटॉप विकासशील देशों में बच्चों को एक डिजिटल शिक्षा का अवसर प्रदान करेगा और दुनिया में डिजीटल विभाजन को रोक देगा
अफ्रीका में NEPAD (NEPAD) ने e-school कार्यक्रम (e-school programme) की संरचना करी जिस के तहेत सभी ६००,००० प्राथमिक और उच्च विद्यालयों को अगले १० सालों में कंप्यूटर उपकरण, शिक्षण सामग्री और इन्टरनेट उपयोग प्रदान होगा The Church of Jesus Christ of Latter-day Saints (The Church of Jesus Christ of Latter-day Saints), जैसे निजी समूह सतत शिक्षा कोष (Perpetual Education Fund) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से प्रगतिशील देशों में अधिक व्यक्तियों की शिक्षा प्राप्ति की ओर काम कर रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के समर्थन के साथ शुरू nabuur.com नामक अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी इंटरनेट का उपयोग परियोजना सामाजिक विकास के मुद्दों पर व्यक्तियों द्वारा सहयोग में मद्दद करता है

अंतरराष्ट्रीयकरण

शिक्षा सही मायने में अंतरराष्ट्रीय बनता जा रहा है। न केवल सामग्री अंतरराष्ट्रीय माहौल से प्रभावित हो रही हैं, लेकिन सभी स्तरों पर छात्रों में आदान प्रदान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है उदाहरण के लिए यूरोप का सुकरात-इरास्मस कार्यक्रम यूरोपीय विश्वविद्यालयों में आदान प्रदान को बढ़ावा देता है सोरोस संस्थान मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप के कई छात्रों को अनेक अवसर प्रदान करता है। बिना परवाह किए के एक प्रणाली दूसरी से बेहतर है यां नहीं, कुछ विद्वान यह बहस करते हैं की शिक्षा के एक अलग अनुभव को अंतरराष्ट्रीय शिक्षण का सबसे मेहेत्वपूर्ण सुशोभना तत्त्व माना जा सकता है

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