अकोले के अगस्ती आश्रम में स्थापित मूर्ति
दूसरा आश्रम महाराष्ट्र के नागपुर जिले में है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ तथा इनका आश्रम पास ही था। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से श्रीराम ने ऋषियों को सताने वाले असुरों का वध करने का प्रण लिया था (निसिचर हीन करुहुँ महिं)। महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इस कार्य हेतु कभी समाप्त न होने वाले तीरों वाला तरकश प्रदान किया था।
एक अन्य आश्रम तमिलनाडु के तिरुपति में है। पौराणिक मान्यता के अनुसार विंध्याचल पर्वत जो कि महर्षि का शिष्य था, का घमण्ड बहुत बढ़ गया था तथा उसने अपनी ऊँचाई बहुत बढ़ा दी जिस कारण सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर पहुँचनी बन्द हो गई तथा प्राणियों में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने महर्षि से अपने शिष्य को समझाने की प्रार्थना की। महर्षि ने विंध्याचल पर्वत से कहा कि उन्हें तप करने हेतु दक्षिण में जाना है अतः उन्हें मार्ग दे। विंध्याचल महर्षि के चरणों में झुक गया, महर्षि ने उसे कहा कि वह उनके वापस आने तक झुका ही रहे तथा पर्वत को लाँघकर दक्षिण को चले गये। उसके पश्चात वहीं आश्रम बनाकर तप किया तथा वहीं रहने लगे।
एक आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले में प्रवरा नदी के किनारे है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। माना जाता है की उनकी उपस्थिति में सभी प्राणी दुश्मनी भूल गये थे।
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