कबीर के गुरु के सम्बन्ध में प्रचलित कथन है कि कबीर को उपयुक्त गुरु की
तलाश थी। वह वैष्णव संत आचार्य रामानंद को अपना अपना गुरु बनाना चाहते थे
लेकिन उन्होंने कबीर को शिष्य बनाने से मना कर दिया लेकिन कबीर ने अपने मन
में ठान लिया कि स्वामी रामानंद को ही हर कीमत पर अपना गुरु बनाऊंगा ,इसके
लिए कबीर के मन में एक विचार आया कि स्वामी रामानंद जी सुबह चार बजे गंगा
स्नान करने जाते हैं उसके पहले ही उनके जाने के मार्ग में सीढ़ियों लेट
जाऊँगा और उन्होंने ऐसा ही किया। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पञ्चगंगा
घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगास्नान करने के लिये
सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से
तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान
लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।कबीर के ही शब्दों में- काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये
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